श्रीमद्भागवतम् या भागवतम् , भागवत कथा | Bhagwat Katha
Pandit Suresh Mishra Ji Maharaj Shrimad Bhagwat Katha
भगवत कथा के अंतर्गत भागवत पुराण हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् नाम से भी जाना जाता है। इस पुराण का मुख्य ध्येय भक्ति योग है, जिसमें भगवान कृष्ण को सभी देवताओं के देव या स्वयं भगवान के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। भगवत पुराण में रस-भाव की भक्ति का विवेचन भी हुआ है। इस पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण के प्रति सच्चे मन से भक्ति करने से जीवन में उद्धार होता है और भगवान का आनंद प्राप्त होता है। इसे वेद व्यास द्वारा रचा गया माना जाता है और इसमें विविध उपाख्यानों के माध्यम से ज्ञान, भक्ति, मुक्ति, अनुग्रह, धर्म और वैराग्य जैसे विषयों का विस्तार किया गया है। श्रीमद्भागवत भारतीय साहित्य का गर्व और मुकुटमणि है। इसमें भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाई जाने वाली भगवत कथा तो मानो सोपान है, जो मनुष्य को भक्तिमार्ग में अग्रसर बनाती है। इस पुराण के प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगंधि महकती है। इसमें साधना-ज्ञान, सिद्धि-ज्ञान, साधना-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत और अद्वैत संगठित रूप से समन्वयित हैं, जो अनेक प्रेरक उपाख्यानों के माध्यम से प्रस्तुत होते हैं।।
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परिचय
अष्टादश पुराणों में भागवत पुराण एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पुराण है। पुराणों की गणना में यह अष्टम पुराण है। महर्षि सूत ने भागवत पुराण में साधुओं को एक कहानी सुनाई है। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं, और सूत जी उन्हें बताते हैं कि उन्होंने यह कथा एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह स्कन्ध हैं और प्रथम स्कन्ध में सभी अवतारों का संक्षेप में वर्णन है। में वर्णन है। -
संरचना
वेद-व्यास द्वारा संक्षेप में भगवत पुराण के स्थान, विषय और महत्व का वर्णन किया गया है। यह पुराण हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रंथों में से एक है और भगवान विष्णु के अवतारों की कथाएं इसमें विस्तृत रूप से प्रस्तुत हैं। भागवत पुराण के श्लोक और अध्यायों की संख्या के कारण इसे अष्टादश पुराणों में गिना जाता है।
इस पुराण के स्कन्धों में विष्णु के अवतारों का सम्पूर्ण वर्णन है। स्कन्ध 1 में सृष्टि का विस्तृत वर्णन है जिसमें वेदों का महत्त्व और धर्म का उपदेश दिया गया है। स्कन्ध 2 से 10 तक में विष्णु के विभिन्न अवतारों की चरित्रकथाएं हैं, जिनमें श्रीकृष्ण का जीवन विशेष रूप से विस्तारपूर्वक बताया गया है। यहां पर उनके बालक लीलाएं, गोपियों के साथ वन भ्रमण, रासलीला, कांस वध, गीता उपदेश, व्रजवासीयों के साथ नियमों का पालन आदि बातें बताई जाती हैै।
भागवत पुराण में रस-भाव की अद्भुतता और भक्तिरस की अमृतधारा विद्यमान है। इसमें विभिन्न रसों के मधुर संगम से भरे गीत, विरह, मिलन, श्रृंगार, हास्य, भय, वीर, करुण आदि के अनेक विशेष उपाख्यान हैं, जो साहित्यिक और अध्यात्मिक रंगों से भरे हुए हैंं।
भागवत पुराण के अद्भुत संग्रह में रासपंचाध्यायी अध्यात्म एवं साहित्य की एक अनूठी वस्तु मिलती है, जो अन्य पुराणों में इतनी मधुर भाषा और भक्तिरस से विस्तार से नहीं मिलती। इस ग्रंथ में वेणुगीत, गोपीगीत, युगलगीत, भ्रमरगीत जैसे अनेक सुंदर गीत हैं जो आत्मीयता और उत्कृष्टता के साथ समृद्ध हैं। भगवत पुराण भक्ति और ज्ञान का सुंदर संगम है और हिन्दी साहित्य में एक अनमोल रत्न है। -
भागवत के १२ स्कन्द निम्नलिखित हैं-
स्कन्ध संख्या विवरण प्रथम स्कन्ध प्रथम स्कन्ध में भक्तियोग और उससे उत्पन्न होने वाले वैराग्य का वर्णन गया है। द्वितीय स्कन्ध द्वितीय स्कन्ध में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और विराट् पुरुष की स्थिति का चित्रण किया गया है। तृतीय स्कन्ध भगवान का बाल चरित्र तृतीय स्कन्ध में उद्धव द्वारा वर्णित है। चतुर्थ स्कन्ध राजर्षि ध्रुव और पृथु आदि चरित्र चतुर्थ स्कन्ध में हैं। पंचम स्कन्ध पाँचवां स्कन्ध: समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की जगह षष्ठ स्कन्ध षष्ठ स्कन्ध में देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के जन्म की कहानी बताई जाती है। सप्तम स्कन्ध प्रहलाद का चरित्र हिरण्यकश्यिपु है, जिसमें हिरण्याक्ष है। अष्टम स्कन्ध गजेन्द्र मोक्ष का अष्टम स्कन्ध, मन्वन्तर कथा का वामन अवतार नवम स्कन्ध राजवंशों का विवरण। श्रीराम की कथा। दशम स्कन्ध भगवान् श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाएं। एकादश स्कन्ध यदु वंश का संहार। द्वादश स्कन्ध द्वादश स्कन्ध में विभिन्न युगों, प्रलयों, भगवान् के उपांगों आदि शामिल हैं। -
महत्व
श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट हो जाते हैं। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कहानी सुनने से एक व्यक्ति महासागर पार कर सकता था। श्रवण से सोया हुआ ज्ञान वैराग्य जागता है। कथा एक कल्पवृक्ष की तरह है, जिससे हर इच्छा पूरी की जा सकती है।
कथा की वास्तविकता तब ही दिखाई देती है जब हम इसे अपने जीवन में अपनाकर हर समय श्रीहरि का स्मरण करते हैं। अपने जीवन को खुशहाल और खुशहाल बनाकर अपना आत्मकल्याण करें। अन्यथा यह कथा केवल मनोरंजन, कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी। भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है।
भागवत कथा का मानव जीवन में बहुत महत्व है। कथा सुनने से मोक्ष मिलता है और मन को शुद्ध करता है। प्रत्येक व्यक्ति को भागवत की पूरी कहानी सुननी चाहिए। भागवत से भक्ति एवं भक्ति से शक्ति की प्राप्ति होती है तथा जन्म जन्मांतर के सारे विकार नष्ट होते हैं। हैं।
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