श्रीरामचरितमानस (Ram Katha) जय जय राम कथा जय श्री राम कथा
श्रीरामचरितमानस कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य है, इस ग्रंथ में 7 काण्ड हैं, राम कथा युगों युगों से गाई और सुनाई जाती है, मानव जीवन के उधार के लिए हर मनुष्य के जीवन में राम कथा का एक विशेष महत्व है। राम कथा 7वा और 9वा दिन की कथा होती है, जिसमें प्रभु श्रीराम के बाल रूप का वर्णन और उनके विवाह और वन गमन इत्यादि का वर्णन मिलता है, भाई के साथ व्यवहार, मित्र के साथ व्यवहार, माता-पिता के साथ किस प्रकार का व्यवहार रखना चाहिए यह राम कथा हमें जीवन में शिक्षा सिखाती है। राम कथा करवाने से हमारे मन में बैठी बुराईयों का नाश होता है, मन शुद्ध होता है, मन, क्रम, वाणी को शुद्ध करने के लिए जीवन में राम कथा अवश्य सुनानी चाहिए एक गृहस्थ को।
श्रीरामचरितमानस, राम कथा मानवता के बेहद बड़े मार्गदर्शक के रूप में सामान्य जीवन की सुझाव भरी शिक्षा प्रदान करता है। इसमें सात काण्ड हैं, जो मानव जीवन को समृद्धि और सामंजस्यपूर्णता की दिशा में अग्रसर करने के लिए एक मूल्यवान सीढ़ी की भूमिका निभाते हैं। इन काण्डों को 'सोपान' कहा गया है, जिसका अर्थ है की ये राम जी के पावन चरणों तक पहुंचने के लिए एक उच्च स्तरीय और मार्गदर्शक सीढ़ी हैं। उसी रूप में जैसे परमात्मा श्रीकृष्ण का नाम-स्वरूप श्रीमद्भागवत है, वैसे ही रामायण और श्रीरामचरितमानस प्रभु श्रीराम की भाषा और साहित्यिक रूप हैं। इस ग्रंथ में सात काण्ड हैं, जो प्रत्येक काण्ड प्रभु श्रीराम के विभिन्न पहलुओं को छूने वाले विशिष्ट घटनाओं को दर्शाते हैं, जैसे—
१. बाल काण्ड, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥
२. अयोध्या काण्ड, बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
३. अरण्य काण्ड, धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपद काल परिखिअहिं चारी ॥
४. किष्किंधा काण्ड, जो नाघइ सत जोजन सागर। करइ सो राम काज मति आगर॥
५. सुंदर काण्ड, प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
६. लंका काण्ड, दस मुख बोलि उठा अकुलाना ॥
७. उत्तर काण्ड, प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
श्रीरामचरितमानस मानवता के सर्वोत्तम मार्गदर्शक है। इसके सात काण्ड मानव जीवन को विभिन्न पहलुओं से देखने और समझने की क्षमता प्रदान करते हैं, और इस पथ पर अनुयायियों को एक ऊँचे स्तर तक पहुंचने का एक नेतृत्व सौंपते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस महाकाव्य के सात काण्डों को 'सोपान' कहा है, क्योंकि ये सीधे रूप से राम जी के पावन पादों तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों की भाषा में हैं।
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1. बाल काण्ड -
श्री रामचरितमानस का प्रथम काण्ड, 'बाल काण्ड', बालकाण्ड में भगवान राम का जन्म के कारण बताया गया है, रामकथा में बालकाण्ड से भगवान शंकरजी के विवाह का वर्णन पहले मिलता है, माता सती और माता पार्वती के विवाह की कथा सुनाई गई है उसके बाद माता पार्वती ने भगवान शंकर से यह जिज्ञासा जाहिर की कि भगवान श्रीराम की कथा उन्हें सुनाई जाए, और इस काण्ड में श्रीराम जन्म और उनके बाल लीलाओं का मधुर कथा सुनाई जाती है। राम कथा विशेष रूप से बालक की भावना को सारिथा है। 'बाल' का अर्थ बालक है, जिसका मन, वाणी, और क्रिया सभी एक हैं। बालक का मन वही कहता है जो होता है, और वही करता है जो वही बोलता है। यहाँ 'बच्चे मन के सच्चे' कहने का तात्पर्य है कि बच्चों में अभिमान, छल-कपट, वैर, आदि नहीं होता, वे निर्दोष और भोले-भाले होते हैं। जिनका हृदय बालक की भावना से समृद्धि, वे ही श्रीराम से मिलते हैं। इस रूप में, बाल काण्ड मनवाना चाहता है कि हमें प्रपंच, दंभ, और वैर को छोड़कर बालक की भावना से जुड़ना चाहिए। -
2. अयोध्या काण्ड -
श्री रामचरितमानस का द्वितीय काण्ड, 'अयोध्या काण्ड', जहां शब्द 'अयोध्या' से तात्पर्य युद्ध के अभाव की जगह है। इस काण्ड में श्रीराम का भरत-प्रेम और सौतेली माता कैकेई के प्रति प्रेम स्पष्ट होता है। कैकेई ने जब यह कहा कि राम को वनवास और भरत को अयोध्या का राज्य, तो राम ने अपने भाई के सुख के लिए वनवास स्वीकार किया। इस रूप में, श्रीराम ने समाज के लिए अद्वितीय आदर्श स्थापित किया। भरत का प्रेम भी दिव्य है, और उन्होंने राज्य स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनके बड़े भाई वन में थे और उनका सुख-सुविधा नहीं कर सकते थे। -
3. अरण्य काण्ड -
श्री रामचरितमानस का तृतीय काण्ड, 'अरण्य काण्ड', गृहस्थ की भूमि और वासना के प्रति नियंत्रण की महत्वपूर्णता पर बल देता है। यह काण्ड सिखाता है कि वासना का नाश तप और संयम से ही संभव है, और गृहस्थ को भी थोड़े समय के लिए संयमपूर्ण जीवन बिताना चाहिए। अरण्यकाण्ड में, श्रीराम और सीताजी ने वन में तप किया और उन्होंने राजा बनने के लिए संयमपूर्ण जीवन को अपनाया। इसके अलावा, इस काण्ड में सूपर्णखा और शबरी की कथा से मनुष्य को मोह का नाश करके शुद्ध भक्ति की ओर बढ़ने का सिखाया जाता है। -
4. किष्किंधा काण्ड -
श्री रामचरितमानस का चतुर्थ काण्ड, 'किष्किंधा काण्ड', सुग्रीव और श्रीराम की मैत्री को उजागर करता है। सुग्रीव ने काम का त्याग किया और इससे उसे परमात्मा से मिला। इस काण्ड में, हनुमान जी के साथ ब्रह्मचर्य और संयम की महत्वपूर्णता को दर्शाया गया है। ब्रह्मचर्य और संयम के माध्यम से ही जीव और परमात्मा का मिलन संभव है। इस काण्ड की शिक्षा है कि काम से मित्रता छोड़ने पर ही राम से मैत्री होती है। -
5. सुंदर काण्ड -
श्री रामचरितमानस का पंचम काण्ड, 'सुंदर काण्ड', हनुमान जी की कथा को उजागर करता है। हनुमान जी का जीवन श्रीराम-भक्ति, सेवा, और परोपकार के लिए है। इस काण्ड में ब्रह्मचर्य और राम-नाम की शक्ति के बल पर हनुमान जी संसार-समुद्र को पार करते हैं और सीता माता के दर्शन करते हैं। इसके अलावा, जीवन को सुंदर बनाने का सूचना दिया जाता है - भक्तिमय बनाओ, जीवन को सुंदर बनाओ। -
6. लंकाकाण्ड -
श्री रामचरितमानस का छठा काण्ड, 'लंका काण्ड', युद्ध की कथा है। इसमें राम और राक्षसराज रावण का युद्ध है। यह काण्ड जीवन में काम, क्रोध, लोभ रूपी राक्षसों के खिलाफ उत्तरार्ध (वृद्धावस्था) के लिए उदाहरण स्थान है। जीवन को सुधारने का प्रयास युवावस्था से ही शुरू करें, यही मुक्ति की सीढ़ी है। -
7. उत्तर काण्ड -
श्री रामचरितमानस का सातवां काण्ड, 'उत्तर काण्ड', शास्त्रों का सार-तत्त्व है। इसमें जीवन के पूर्वार्ध (यौवनावस्था) में रावण को मारने से होने वाला उत्तरार्ध (वृद्धावस्था) सुंदर बनता है, जिससे जीवन को सुधारने का मार्ग दिखाया जाता है।
पंडित श्री सुरेश मिश्र जी महाराज किशोरावस्था से ही श्रीरामचरितमानस का पाठ और गायन कर रहे हैं, पिछले 20 वर्षों से श्रीराम कथा का गायन भजन कर रहे हैं, पंडित जी का श्रीरामचरितमानस की चौपाई पर अच्छी पकड़ है, वे चौपाई के माध्यम से कथा को तार्किक रूप से सुनाते हैं, कथा के मध्य बहुत सुंदर भजनों का गायन राम कथा सुनने वालों को बहुत पसंद आता है।
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